वो मुझे अक्सर दिखता था वहम मे, अनजाने मे
वहम, जेहेन में ज्यादा देर टिकता नहीं, बारिश के पानी सा
वो अचानक से टिक जायेगा
इसका अंदेशा मुझे था नहीं
वैसे बारिश के पानी भी टिकते हैं
गहराई में, शान्त
आपको दीखते नहीं
इसका मतलब ये नहीं की वो टिकते नहीं
वो भी शांत ही रहता था, मूक
बेजुबान सा मुझे गूँधता रहता
कहीं तो गहराई में
सच कहूँ मैंने कभी जनने की कोशिश नहीं की
मैं कठोर सा जब ज़माने पे गुस्सा
बारिश में भीगता रहता था
वो अक्सर मुझे सड़कों के गड्ढों में
घुलता सा दिख जाता था
हालात के हिलकोरों में झूलता हुआ
अक्सर कोई आती जाती गाड़ी
मुह कुचल देती थी उस गड्ढे का
पर कुछ वक़्त में
वो फिर वहीँ होता था
हालात को मजबूर करता हुआ
मुझे नौकरी मिल गयी
ना कुचले जाने की
मैंने खुसी से उस सड़क के किनारे बैठी भिखारन को
उम्मीद से ज्यादा पैसे दिए
तब मुझे बोध हुआ
बेरोजगारी का
बार बार कुचले जाने का
पानी में रहते आदमी में
मुझे एहसास दिलाया
परछाईं महज रोशनी में रखी वस्तु की नहीं होती
वस्तु भी परछाईं होती है
फर्क रौशनी के पड़ने का है
रौशनी मुझपे नहीं पड़ी
और आज मेरी नौकरी चली गयी
पर मैं बेरोजगार तब हुआ
जब उस भिखारन ने मेरी भीक वापस कर दी
और बदले में रख लिया थोड़े सा बारिश के पानी
जहाँ वो आदमी अक्सर दिखा करता था
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