Saturday, June 18, 2016

बारात की भीड़ में

एक वक़्त जा रहा है
   जा चूका भी है

इस तूफान का अंत कहाँ है

यार धुल बहुत है
तुम सुनाई दे रहे हो
पर दिख नहीं रहे

ज्यादा दूर नहीं
पर बहुत दूर

मुझे पता है तुम भी यहीं हो
                            फंसे

हिस्सों में दिख भी जाते हो
तो आसमान लगते हो
जो कभी भी पूरा मिला नहीं

बहुत पुराना शहर है
हर दिन कोई दिवार गिरती ही रहती है यहाँ
हवाएं आखिर जीत ही जाती है
आँधियाँ आषाढ़ की

शायद फिर अब कभी ना मिले वो चमक
आँखों में हमारे तुम्हारे
पर चमकेगी रेत आँखों की
चाँद के चढ़ते ही

"मैं सुन सकता हूँ तुम्हें
जरा जोर से बोलो "

"खैरियत रखना "

इस धुल धुंध में
दुन्धला के रहना

"बस यार खैरियत रखना"




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