Friday, September 30, 2016

अवसाद में

ए तुम्हे पता है ना
के कितना कुछ बदल जाता है
तुम्हरे बिन

जब दोनों साथ में लेटते हैं
एक दूजे की सांसे चुराते हुए
ज़माने से

अकेले मैं ठंडा पड़ जाता हूँ
जब सांस लुटा आता हूँ
जैसे ठोकर खोये को पुछा नहीं हों किसी ने
कई दिनों से

उधड़े मांस पे फटे निशान
मेरी दिशाएं तुझपे
बढे तापमान सा तेरा लहू
तुम्हे छूना, जिन्दा होना
गर्माहट सा
तुम्हे न छूना जिन्दा हुए जाना
ठण्ड सा

तुमने कुछ टाके थे काटे
मुझपे
लगता है पचपन साल बाद
अगर खो भी दूँ एहसास
याद कर के खुश रहूँगा
काटे हुए वो निशान
अवसाद में

नीला आसमान टेढ़ा हो चूका है
पंछी बवंडर मचा रहे हैं
मेरी पीठ पे झुनझुनी सी है
मेरे पाँव गल से गए हैं
मेरी आँखों की कोख में तुम बैठी हो
नहीं, उम्मीद की तरह नहीं
एक लम्बी रिसती याद सी   

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