वो 'स्ट्रीट लाइट'
पेड़ के पीछे वाली
पत्तों की पलकों से मुझे अनदेखा सा करती है
मैं पीला पड़ जाता हूँ
हर रात उसकी रौशनी में,
बीमार
बीमार
पसीजा सा मेरा बिस्तर,
एक गीली जमीन सड़ने को
मैं सराबोर
वंचित आसमान
वंचित आसमान
जो दीखता तो है मगर कोई छू नहीं सकता
या
वो खिड़की के बहार
तीसरी मंजिल का कोना
जिसे छू तो सकते हैं मगर कोई कोशिश नहीं करता
मैं सराबोर
वंचित सपना
हाँ !
वही तीसरी मंजिल का कोना
वही तीसरी मंजिल का कोना
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