Sunday, August 16, 2015

तो अब खो भी दो इसे

दिन अच्छे भी होते हैं
      लोग बुरे भी
            मगर जिंदगी नहीं

तो
अब खो भी दो इसे

किसी के हो भी गए
    तो लिफाफों में, दराजों में
            बीत जाएगी

किसी के ना हुए
    तो यूँ ही
           धूल बन जाएगी

ये सजावट
    जैसे तारों की
           हर दिन

तो
अब खो भी दो इसे

भला ये किसके काम आएंगे

जैसे बरसात का पानी
      बारिश के बाद
वो चमकीला कागज
      उपहार के बाद
जिस्म की मैल
      धुलने के बाद
मेरी ये बात
      जुबां के बाद

दिन अच्छे भी होते हैं
      लोग बुरे भी
            मगर जिंदगी नहीं

इसी लिए

मै मरने का ख़याल भी
      रातों को लाता हूँ
के आँखे बंद करने से
      डर लगता है

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