स्याह रातों पे
स्याहियां फेंकते थे
हम तुम
इंक पेन से
और जो हाथों पे
फ़ैल जाती थी
तुम कहती थी
अपने बालों पे पोछ लो
काले में काला
छुप जायेगा
मै बारिशों को
भूल गया था
वो काल मेरे चेहरे पर
साफ़ दिखता है
सभी को
बस मुझे नहीं
के तुम थी
तुम हो नहीं
स्याहियाँ सूखी है
खत्म नहीं हुई
बादल सूख गए है
सफ़ेद से, पर है वहीं
मुन्तजिर है, दवात के
जो रात फिर कभी हुई नहीं
स्याहियां फेंकते थे
हम तुम
इंक पेन से
और जो हाथों पे
फ़ैल जाती थी
तुम कहती थी
अपने बालों पे पोछ लो
काले में काला
छुप जायेगा
मै बारिशों को
भूल गया था
वो काल मेरे चेहरे पर
साफ़ दिखता है
सभी को
बस मुझे नहीं
के तुम थी
तुम हो नहीं
स्याहियाँ सूखी है
खत्म नहीं हुई
बादल सूख गए है
सफ़ेद से, पर है वहीं
मुन्तजिर है, दवात के
जो रात फिर कभी हुई नहीं
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