Tuesday, July 28, 2015

धार पे धार का भार है

यहाँ हर धार पे धार का भार है
के टूटे शीशों से पूछो कौन कितना बेकार है

ये अक्कड बक्कड़ कर धीरे धीरे गिरता है
मुझे नहीं पता ये किसे घूरता है

इस जख्म पे
            हर सहलने वाले के
                                खून का निशान है

यहाँ हर धार पे धार का भार है
के टूटे शीशों से पूछो कौन कितना बेकार है

ये चबा चबा के रोशनियाँ चटका देता है
जाल सा है बस शिकार का इन्तेजार है

जरा ध्यान रखना
           इस मुस्कान के पीछे
                                नोकीले दांत है

यहाँ हर धार पे धार का भार है
के टूटे शीशों से पूछो कौन कितना बेकार है




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