कुछ तो कहो
उस बीते हुए दिन पे
या रात पे
इस लम्हे की कगार पे
उस मुंडेर पे लटकी तुम्हारी गीली सलवार पे
जकड़ी हुई पड़ी है
मुझे सर्दी लग रही है
खामोशियाँ
ये हवाएं तक
जंगल जा कर
कुछ कहती है
पानी कलकला उठता हैं
बहते वक़्त
बादल भी आकर बदलते है
होठो के
कुछ तो कहो
मेरी नज्मों पे
उस अंग पे
भाप से शीशे के निशान पे
दरारें नहीं, तुम्हारी उँगलियों की छाप पे
मै सूख रहा हूँ
ख्याल रौंगटे खीच रहे हैं
कुछ तो कहो …
या रुको
चुप ही रहो
ये शब्द तुम्हे
बिगाड़ देंगे
उस बीते हुए दिन पे
या रात पे
इस लम्हे की कगार पे
उस मुंडेर पे लटकी तुम्हारी गीली सलवार पे
जकड़ी हुई पड़ी है
मुझे सर्दी लग रही है
खामोशियाँ
ये हवाएं तक
जंगल जा कर
कुछ कहती है
पानी कलकला उठता हैं
बहते वक़्त
बादल भी आकर बदलते है
होठो के
कुछ तो कहो
मेरी नज्मों पे
उस अंग पे
भाप से शीशे के निशान पे
दरारें नहीं, तुम्हारी उँगलियों की छाप पे
मै सूख रहा हूँ
ख्याल रौंगटे खीच रहे हैं
कुछ तो कहो …
या रुको
चुप ही रहो
ये शब्द तुम्हे
बिगाड़ देंगे
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