चालीस साल बाद
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
तो कीमत से ज्यादा
यादों का हिसाब होता
अश्कों की कमाई होती
माफियों का कर्ज माफ़ होता
जो
चालीस साल बाद
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
तो जवाबों से ज्यादा
मुनासिब सवाल होता
वो भलाई नहीं होती
दिलदार करार होता
जो
चालीस साल बाद
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
खोई हुई उम्मीद का
मजाक उड़ा होता
हैरानी, चीख सी होती
पर ठहाकों से समाधान होता
जो
चालीस साल बाद
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
तो कीमत से ज्यादा
यादों का हिसाब होता
अश्कों की कमाई होती
माफियों का कर्ज माफ़ होता
जो
चालीस साल बाद
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
तो जवाबों से ज्यादा
मुनासिब सवाल होता
वो भलाई नहीं होती
दिलदार करार होता
जो
चालीस साल बाद
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
खोई हुई उम्मीद का
मजाक उड़ा होता
हैरानी, चीख सी होती
पर ठहाकों से समाधान होता
जो
चालीस साल बाद
कोई किसी की लूट का
सामान लौटा देता
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