Tuesday, July 21, 2015

पलायन, भाग किससे रही है ??

वो घबराई, डर से
      अचानक कूद के सड़क पे

यूँ दौड़ने लगेंगी नंगी सी

मेहफ़ूज़ नशेमानो ने
       सोचा भी ना था

वो शोषित शोषण सा हवलदार
      मजबूरी और अपराध को नापता रह गया तराजू पे

वो भाग निकली

एक स्वेत स्वछ धोती ने
      ताना कस के छुटकारा पा लिया
             इन हिज्रति हरामियों पे

और पीछे से
     शरमाते पर्दों से झाक कर भी देख लिया
            तरस खाती ममताओं ने

रिक्शे पे, गुलदस्ते से सजे स्कूली बच्चे
     तो हस पड़े उसपे
             रिक्शेवाले ने रिक्शा घुमा लिया

कुछ समाज के अखाड़ेबाजों ने
         चीखा भी 
            और फिर पागल करार कर दिया

वो भागती रही

एक कपडा भी ना फैका गया किसी से
      समझ और हरकत में फासला बहुत था
             और वक़्त कम

वो काली बिल्ली भी नहीं थी
      जो रस्ता बदल के संतोष कर लेते
              हैरान थे

वो पूरी की पूरी औरत थी
      जिसका शरीफ
           सिर्फ जेहेन में, अंधेरे में चीर हरण करते थे

वो भागती रही

किसी ने मजाक बना के
       दातों तले समोसे में
            दबा लिया

तो किसी ने
        'लैमिनेटेड' शीशे चढ़ा के कारों में
              अँधेरा कर लिया

शाम तक
       एक रिपोर्ट भी ना दर्ज हुई
             थाने में

शायद सबके पास
      अपनी अपनी वजह हैं
            उसे, ना याद रखने की 

वो भागती रही, दिनभर
       शहर की पीठ पर
               एक हंटर के निशान सी

और
     फिर भी किसी ने ना पूछा

के ये पलायन
      भाग किससे रही है ??


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