Tuesday, July 21, 2015

बस की आखरी सीट पर

बस की आखरी सीट पर
       दोनों कलाइयाँ उलझाए
                  बैठे थे

सावन की छोटी बुँदे उसके गाल पे
कंधे से लटके इसके हाथ पे
         आ आ कर एक एहसास जाता रही थी

दरीचे के खाली कोने से
        आने वाले कल को
               वो दोनों ढूंढ रहे थे

ये सोच रहे थे
     हर कल
            ये पल
नसीब होगा के नहीं

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