वो किनारों पे खड़ी
सागर को तकती सी
लड़की
वो लम्बे से, फैले से
आसमान को जमीन तक
गिला करते से पाट
उसकी मुस्कान
वो आती हुई हवाए
उसकी जुल्फें, एक दूसरे पे
चढ़ती, उछलती सी
वो हस्ती थी
जब जाती हुई लहरें
मिट्टी खिसका के
उसके तलवे गुदगुदाती थी
वो.…
शायद खुद एक किनारा थी
वो अक्सर शांत रहती थी
सीपियों सी
जिन्हे उठा कर
दूर, बहुत दूर
ला दिया गया है
शहरों में
मगर
कान लगाओ तो
लहरें साफ़ सुनाई देती है
उसने चलना तक रेतो पे सीखा था
इसी लिए, तारकोल की सड़कें उसे चुभती थी
उसे शहरों में भी किनारे ही पसंद थे
हाँ! वहीं जगह जहां फूल जंगल से महकते है
परफ्यूम से नहीं
मै हस देता था उसपे
बाजार के शोर सा
मजाक उड़ाने को
वो, समंदर सी
हर बात को कहीं डूबा के
ठंडी लहर सा लौटा देती थी
वो.…
सच में एक किनारा थी
शांत, सुकून सा किनारा
सागर का
क्योकि, जब भी मै
इस शहर सा धुएं-धुएं
पिली आँखों में शाम को ले कर
बैठता था
वो हाथ पकड़ कर कहती थी
" चलो, किसी किनारे को चलते है "
सागर को तकती सी
लड़की
वो लम्बे से, फैले से
आसमान को जमीन तक
गिला करते से पाट
उसकी मुस्कान
वो आती हुई हवाए
उसकी जुल्फें, एक दूसरे पे
चढ़ती, उछलती सी
वो हस्ती थी
जब जाती हुई लहरें
मिट्टी खिसका के
उसके तलवे गुदगुदाती थी
वो.…
शायद खुद एक किनारा थी
वो अक्सर शांत रहती थी
सीपियों सी
जिन्हे उठा कर
दूर, बहुत दूर
ला दिया गया है
शहरों में
मगर
कान लगाओ तो
लहरें साफ़ सुनाई देती है
उसने चलना तक रेतो पे सीखा था
इसी लिए, तारकोल की सड़कें उसे चुभती थी
उसे शहरों में भी किनारे ही पसंद थे
हाँ! वहीं जगह जहां फूल जंगल से महकते है
परफ्यूम से नहीं
मै हस देता था उसपे
बाजार के शोर सा
मजाक उड़ाने को
वो, समंदर सी
हर बात को कहीं डूबा के
ठंडी लहर सा लौटा देती थी
वो.…
सच में एक किनारा थी
शांत, सुकून सा किनारा
सागर का
क्योकि, जब भी मै
इस शहर सा धुएं-धुएं
पिली आँखों में शाम को ले कर
बैठता था
वो हाथ पकड़ कर कहती थी
" चलो, किसी किनारे को चलते है "
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