है ये दंगा
आधा नंगा
आ के तुझको
घूरता
के किस गली में
काला कौवा
खाएगा
तुझे गोश्त सा
कट गए हैं
जो ये जन
तो छिल गई
अबादियाँ
सड़कों पे
चिपकी जो हैं लाशें
सुखी सी हैं
पपड़ियाँ
क्या पड़ी है
जो अभी तक
तू उसे
खुजला रहा
नासूर
होते हैं ही ऐसे
ना पता था
तुझको क्या ?
तेरे सपनो
का चमन
आँखों में
दिखता था ?
खामोश रहते
जैसे मुर्दे
चीखता
दंगा यहाँ ?
बस चीखता दंगा यहाँ
बस चीखता दंगा यहाँ
आधा नंगा
आ के तुझको
घूरता
के किस गली में
काला कौवा
खाएगा
तुझे गोश्त सा
कट गए हैं
जो ये जन
तो छिल गई
अबादियाँ
सड़कों पे
चिपकी जो हैं लाशें
सुखी सी हैं
पपड़ियाँ
क्या पड़ी है
जो अभी तक
तू उसे
खुजला रहा
नासूर
होते हैं ही ऐसे
ना पता था
तुझको क्या ?
तेरे सपनो
का चमन
आँखों में
दिखता था ?
खामोश रहते
जैसे मुर्दे
चीखता
दंगा यहाँ ?
बस चीखता दंगा यहाँ
बस चीखता दंगा यहाँ