तुम, मैं
एक कोख के दो टुकड़े
अलग, बिखरे
जैसे मिट्टी के बर्तन
टूट के भी एक से नहीं दिखते
रिश्ते एक जगह हैं मेरी 'शेल्फ' पे
जहां कभी मैं और तुम
बगल बगल मे थे खड़े
किताबें
अब तुम में दिलचस्पियाँ हैं
मुझमे आदतें
इस लिए बीच मे हैं
और किताबें
मैं अब
कभी कभार झांक कर देखता हूँ
जितनी भी दिखती हो, खुश लगती हो
वैसे भी इन सटे कागजों में
अंदर के फटे कागज दीखते नहीं
और लोग आज कल किताबें पढ़ते नहीं
वो हमारी खिलौनों की टोकरी
किसने उड़ेल दी है
उसमे वो गुड़िया
जिसकी एक आँख झगडे में टूट गई थी
वो एक आँख से अब भी देख सकती है
के बचपन बच के भी
कितना कम बचा है
के अब तक बहुत कुछ बिक चुका है
बहस करने को कितना कुछ बचा है
पर, अब हम दोनों को खुश रहने का
शायद, थोड़ा नशा हो चुका है
याद है वो एक रस्म समाज की?
प्यार माँ का
तोहफा तुम्हारा
रक्षा पिताजी की
और
बंधन मेरा
तुम्हारी बचपन की राखियों के धागे
तो अब तक मिट्टी हो चुके होंगे ना
पर उस पर चिपकी चमकीली प्लास्टिक शायद नहीं
के प्लास्टिक कभी गलती नहीं
और बंधन का मुझे पता नहीं
एक कोख के दो टुकड़े
अलग, बिखरे
जैसे मिट्टी के बर्तन
टूट के भी एक से नहीं दिखते
रिश्ते एक जगह हैं मेरी 'शेल्फ' पे
जहां कभी मैं और तुम
बगल बगल मे थे खड़े
किताबें
अब तुम में दिलचस्पियाँ हैं
मुझमे आदतें
इस लिए बीच मे हैं
और किताबें
मैं अब
कभी कभार झांक कर देखता हूँ
जितनी भी दिखती हो, खुश लगती हो
वैसे भी इन सटे कागजों में
अंदर के फटे कागज दीखते नहीं
और लोग आज कल किताबें पढ़ते नहीं
वो हमारी खिलौनों की टोकरी
किसने उड़ेल दी है
उसमे वो गुड़िया
जिसकी एक आँख झगडे में टूट गई थी
वो एक आँख से अब भी देख सकती है
के बचपन बच के भी
कितना कम बचा है
के अब तक बहुत कुछ बिक चुका है
बहस करने को कितना कुछ बचा है
पर, अब हम दोनों को खुश रहने का
शायद, थोड़ा नशा हो चुका है
याद है वो एक रस्म समाज की?
प्यार माँ का
तोहफा तुम्हारा
रक्षा पिताजी की
और
बंधन मेरा
तुम्हारी बचपन की राखियों के धागे
तो अब तक मिट्टी हो चुके होंगे ना
पर उस पर चिपकी चमकीली प्लास्टिक शायद नहीं
के प्लास्टिक कभी गलती नहीं
और बंधन का मुझे पता नहीं
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