मेरे हर कदम को चूमती है
ये जमी बड़ी चाह से
हर साँस में कर सरगोशी
दुआ बरती है ये हवाएं
ये रौशनी झूला झूलती है
पकडे पंखुड़ी मेरे नयनों की
हाँ करती तो है धुन भी
कत्थक मेरे कानो में हर रोज
फिर महक भी आती है
कुछ दूर से हक़ ज़माने को
और एक जायका भी आता है
अंगड़ाई ले कर फैलने मेरी जुबां पे
कम से कम इतना खुशनसीब
तो हर दिन हो लेता हूँ मै
अब ये गम रखने की जगह
कहाँ से बनाऊ
ये जमी बड़ी चाह से
हर साँस में कर सरगोशी
दुआ बरती है ये हवाएं
ये रौशनी झूला झूलती है
पकडे पंखुड़ी मेरे नयनों की
हाँ करती तो है धुन भी
कत्थक मेरे कानो में हर रोज
फिर महक भी आती है
कुछ दूर से हक़ ज़माने को
और एक जायका भी आता है
अंगड़ाई ले कर फैलने मेरी जुबां पे
कम से कम इतना खुशनसीब
तो हर दिन हो लेता हूँ मै
अब ये गम रखने की जगह
कहाँ से बनाऊ
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