अरे! ये कितनी यादें भर दी थी तुमने मुझमे
जो अरसा बीते अब तक बह रही हैं आँखों से
जो टुटा था तुझमे मुझमे,
उसके जख्म तो भर गए है
पर शायद एक फ़ांस छूट गयी है अंदर
जो अब तक चुभ रही है
के आज रात चाँद की सुई से
उसे भी निकालना पड़ेगा
के तुझे अब भूलना पड़ेगा
जो अरसा बीते अब तक बह रही हैं आँखों से
जो टुटा था तुझमे मुझमे,
उसके जख्म तो भर गए है
पर शायद एक फ़ांस छूट गयी है अंदर
जो अब तक चुभ रही है
के आज रात चाँद की सुई से
उसे भी निकालना पड़ेगा
के तुझे अब भूलना पड़ेगा
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