है जलती तो लाश उस खेमें में भी
बनती है राख उस सरहद पे भी
चीरा था जिसे इस युद्ध यहीं
चीखें उसकी आती अब भी
आँसू उसके सूखे भी नहीं
परते पड़ती, बढ़ती ही गयीं
उदास ये मन परेशान है
फिर भी ये जानवर अशांत है
खूंखार है, शर्मशार है
आदत का अपनी शिकार है
अगले पों फट फिर उठेगा
साहस की आड़ में रक्त न्रत्य नाचेगा
बनती है राख उस सरहद पे भी
चीरा था जिसे इस युद्ध यहीं
चीखें उसकी आती अब भी
आँसू उसके सूखे भी नहीं
परते पड़ती, बढ़ती ही गयीं
उदास ये मन परेशान है
फिर भी ये जानवर अशांत है
खूंखार है, शर्मशार है
आदत का अपनी शिकार है
अगले पों फट फिर उठेगा
साहस की आड़ में रक्त न्रत्य नाचेगा
मृत मचेगा, मृत बचेगा