Wednesday, July 23, 2014

कश्मकश


कश्मकश से जूझती, पग पग डगर को ढूंढती,
ज़हन में ऐसी खूट थी, मुझको हर पल जो तोड़ती,

खीज खीज चला जो दूर मै, खीच खीच आई वो ढूढ़ती,
हरगिज किया ऊसने खफा,
रूठी यहाँ, रूठी वहाँ,
ये दास्ताँ, वो दास्ताँ


ये दास्ताँ ही और थी, अलग थलग मजबूर थी,
काँटों काँचो की चुभन भरी, गुज़री वो दर्द के हद से थी,

बूंदो बूंदो जो खून बहा, आंसू आंसू बहता वो चला,
जीना तो पड़ा उसके भी बिना,
गर्दिश में यहाँ, गर्दिश में वहाँ,
ये बेजुबान, वो बेजुबान,


ये बेजुबान थम थम गिरा, लप झप उठा और फिर गिरा,
नासूर लिए शिकन के बिना, बदन पे सजा निशाँ वो बढ़ा,

आँखों में फिर भी धुल थी, मंजिल बहुत ही दूर थी,
उसपे भी चला, उस साथ बिना,
जूंझता यहाँ, जूंझता वहाँ,
ये कश्मकश, वो कश्मकश

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