Sunday, July 27, 2014

मृत

है जलती तो लाश उस खेमें में भी
बनती है राख उस सरहद पे भी

चीरा था जिसे इस युद्ध यहीं
चीखें उसकी आती अब भी
आँसू उसके सूखे भी नहीं
परते पड़ती, बढ़ती ही गयीं

उदास ये मन परेशान है
फिर भी ये जानवर अशांत है
खूंखार है, शर्मशार है
आदत का अपनी शिकार है

अगले पों फट फिर उठेगा
साहस की आड़ में रक्त न्रत्य नाचेगा
मृत मचेगा, मृत बचेगा

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