स्याही स्याही खून बहायें,
कागजों पे येही
आँखें ना खोल पाएँ,
ये नन्ही जिन्दगी
दीवारों के आगे,
हैं जहां और भी
ये भी ना सोच पाएं,
कैसी ये बंदगी
सहमे से बैठे हैं,
डाटों के जोर पे
चलना ना सीख पायें,
खयालों पे ये कभी
शब्दों को जोड़ के,
ये लड़ाई है लड़ी
सीधे-साधे मन पे,
क्या असर वो छोड़ गयी
कड़वी तो ना थी,
पर है चखाई ये गयी
कैसी पढ़ाई है ये,
जो घोटाई है गयी
कागजों पे येही
आँखें ना खोल पाएँ,
ये नन्ही जिन्दगी
दीवारों के आगे,
हैं जहां और भी
ये भी ना सोच पाएं,
कैसी ये बंदगी
सहमे से बैठे हैं,
डाटों के जोर पे
चलना ना सीख पायें,
खयालों पे ये कभी
शब्दों को जोड़ के,
ये लड़ाई है लड़ी
सीधे-साधे मन पे,
क्या असर वो छोड़ गयी
कड़वी तो ना थी,
पर है चखाई ये गयी
कैसी पढ़ाई है ये,
जो घोटाई है गयी
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