कलम के बल पे, समाज से लड़े थे
अतीत की सेज पर, भविष्य के किले थे
कला को कल में बदलने चले थे
उजड़े बसेरों के आशियाँ बने थे
उठती अंधी को बारिश से बंधने निकले थे
सजाने इस जग को अपने रक्त से चले थे
वो महीन कारीगर थे, वो महीन कारीगर हैं
अतीत की सेज पर, भविष्य के किले थे
कला को कल में बदलने चले थे
उजड़े बसेरों के आशियाँ बने थे
उठती अंधी को बारिश से बंधने निकले थे
सजाने इस जग को अपने रक्त से चले थे
वो महीन कारीगर थे, वो महीन कारीगर हैं
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