स्याहियों को गोद रहा हूँ
कागजों को भर रहा हूँ
शब्दों में लिख कर मै
खयालों को पोंछ रहा हूँ
जिए जो क़ुछ पल मैंने
उन फलों को बटोर रहा हूँ
हुए जो इन्तेहाँ ऐसे
उन हलचलों को दबोच रहा हूँ
सन्नाटे जो कह गए
उनमे आवाज भर रहा हूँ
फर्राटे में जो छूट गए
उन्हें याद कर रहा हूँ
आँखों को जो छू गए
उनकी तस्वीर बना रहा हूँ
जो किसी को ना बंधे
वो लकीर खीच रहा हूँ
थकावट के दर्द से भरी
उन नींदों में सो रहा हूँ
आवाज की भीड़ में जो भी सुना
उसे समझ रहा हूँ
अगर ये नशा है
तो मै उसमे धुप हो रहा हूँ
लोग कहते है, क्या कर रहा हु मै
मैं ! मैं तो सिर्फ जी रहा हूँ
कागजों को भर रहा हूँ
शब्दों में लिख कर मै
खयालों को पोंछ रहा हूँ
जिए जो क़ुछ पल मैंने
उन फलों को बटोर रहा हूँ
हुए जो इन्तेहाँ ऐसे
उन हलचलों को दबोच रहा हूँ
सन्नाटे जो कह गए
उनमे आवाज भर रहा हूँ
फर्राटे में जो छूट गए
उन्हें याद कर रहा हूँ
आँखों को जो छू गए
उनकी तस्वीर बना रहा हूँ
जो किसी को ना बंधे
वो लकीर खीच रहा हूँ
थकावट के दर्द से भरी
उन नींदों में सो रहा हूँ
आवाज की भीड़ में जो भी सुना
उसे समझ रहा हूँ
अगर ये नशा है
तो मै उसमे धुप हो रहा हूँ
लोग कहते है, क्या कर रहा हु मै
मैं ! मैं तो सिर्फ जी रहा हूँ
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