फूल रखती थी वो
सजा अपने कमरे में
शायद वजह थे वो
उसकी मुस्कान के
उसके ख़्वाब के
एक सुबह घूम रहा था मैं
अपनी भिनभिनाती नज्मो के के साथ
जब वो दो खिली कलियों ने
मुस्कुरा कर देखा मुझे
जैसे गुजारिश कर रही थी वो
उसकी आवाज सुनने को
उसके रियाज में सजने को
पंहुचा तो था उसके दरवाजे
उनकी मखमली फरियादें लिए अपने हाथ में
पर इससे पहले की कुछ हो पाता
उसका केवाड़ मैं खटका पाता
एक सुर उसका यूं उतर गया
साहस मेरा भी चिरक गया
छेड़ ना पाया उसके हसीन रियाज को
उसकी हसीन आवाज को
छोड़ आया उन कलियों को उसकी अटरिया पे
हिम्मत ना हुई मुड़ कर आँख मिलाने की
शायद हवा के जोर पर
पंखुड़ियां हिला रहे थे वो
जैसे खोज रहीं हो अपना
बिछड़ा किसी भीड़ में
क्या मिली थी तुम उनसे ?
क्या पोछे थे तुमने उनके आँसू ?
सजा अपने कमरे में
शायद वजह थे वो
उसकी मुस्कान के
उसके ख़्वाब के
एक सुबह घूम रहा था मैं
अपनी भिनभिनाती नज्मो के के साथ
जब वो दो खिली कलियों ने
मुस्कुरा कर देखा मुझे
जैसे गुजारिश कर रही थी वो
उसकी आवाज सुनने को
उसके रियाज में सजने को
पंहुचा तो था उसके दरवाजे
उनकी मखमली फरियादें लिए अपने हाथ में
पर इससे पहले की कुछ हो पाता
उसका केवाड़ मैं खटका पाता
एक सुर उसका यूं उतर गया
साहस मेरा भी चिरक गया
छेड़ ना पाया उसके हसीन रियाज को
उसकी हसीन आवाज को
छोड़ आया उन कलियों को उसकी अटरिया पे
हिम्मत ना हुई मुड़ कर आँख मिलाने की
शायद हवा के जोर पर
पंखुड़ियां हिला रहे थे वो
जैसे खोज रहीं हो अपना
बिछड़ा किसी भीड़ में
क्या मिली थी तुम उनसे ?
क्या पोछे थे तुमने उनके आँसू ?
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