नानी की सेवइयां, खेमे यादों की खेवईयां
आंगन की चौपइया, ढूंढे आँखों, खोये चैना
पोखरे की कोख में, सांसे रोके डुबकी लेना
सावन की मछली को नंगी मुट्ठी से पकड़ना
कानों में डाले उँगली, लाठी पे ताने सीना
बिरहा की धुन गाती चलती यारों की वो सेना
बागों की वो अमिया तोड़े - दौड़े भागे छिपना
मैं - मैं जब चिल्लाती थी वो चरवाहे गईया
मिट्टी रगड़े दंगल में रोमांच से कुस्ती लड़ना
बाऊजी के नहलाने पर चीख चीख के रोना
ढेबरी की रोशनी से, चमकते थे ये नैना
घुपाली की गर्माहट में कटती थी सर्दी की रैना
पगडंडी पर लचकते चलते, बचपन था जो बीता
उन मिट्टी के घर की सासों को, फिर तरसे मन मेरा
आंगन की चौपइया, ढूंढे आँखों, खोये चैना
पोखरे की कोख में, सांसे रोके डुबकी लेना
सावन की मछली को नंगी मुट्ठी से पकड़ना
कानों में डाले उँगली, लाठी पे ताने सीना
बिरहा की धुन गाती चलती यारों की वो सेना
बागों की वो अमिया तोड़े - दौड़े भागे छिपना
मैं - मैं जब चिल्लाती थी वो चरवाहे गईया
मिट्टी रगड़े दंगल में रोमांच से कुस्ती लड़ना
बाऊजी के नहलाने पर चीख चीख के रोना
ढेबरी की रोशनी से, चमकते थे ये नैना
घुपाली की गर्माहट में कटती थी सर्दी की रैना
पगडंडी पर लचकते चलते, बचपन था जो बीता
उन मिट्टी के घर की सासों को, फिर तरसे मन मेरा
No comments:
Post a Comment