तुझे तकते हुए
इन आँखों के दर्द से
अँधा न हो जाऊं
अंधेरों में चलता
तेरे ख्वाबों को पसेरे
कहीं शर्मिंदा न हो जाऊं
तेरे चुनर की चाहत में
आसमा को पकड़ता
एक परिन्दा न बन जाऊं
उजड़े अधूरे सवालों सा
बसता जो खंडहरों में, पुराने शहरों के
एक सन्नाटा ना बन जाऊं
चाहता हुँ बनना गवाह तेरे वजूद का
पर तेरी अनजान नजरों में
एक धुंधली तस्वीर सा ना रह जाऊं
इन आँखों के दर्द से
अँधा न हो जाऊं
अंधेरों में चलता
तेरे ख्वाबों को पसेरे
कहीं शर्मिंदा न हो जाऊं
तेरे चुनर की चाहत में
आसमा को पकड़ता
एक परिन्दा न बन जाऊं
उजड़े अधूरे सवालों सा
बसता जो खंडहरों में, पुराने शहरों के
एक सन्नाटा ना बन जाऊं
चाहता हुँ बनना गवाह तेरे वजूद का
पर तेरी अनजान नजरों में
एक धुंधली तस्वीर सा ना रह जाऊं
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