हर रात, अंगड़ाई से
चादर जो खीच लेती है वो
मेरे ऊपरी कंधे पे ठंड
आ बैठती है, पालतू सी
मै उसे हटा नहीं पाता,
एक सौदा वहीँ जम जाता है नींद का
मौत
कुछ यूँ सोती है मेरे बगल में
दिन में जब परछाईं सहम के
सिकुड़ जाती है
वो गर्दन के
सिराहने बैठ
हर पल को विडंबना बना
फुसफुसाती है कान में
मौत
तब बहुत काइयां लगती है
जब लिखते लिखते
मेरा दायां हाथ
बहिने का क़त्ल करना चाहता है
के क्यों इतने
निरस्त हो ? मुर्दा हो ?
सवाल गूंजता है
मौत
तब बहुत हस्ती है मुझपे
वो नाचते हुए आती है
मेरे कन्धों को छू नाखून से
गुदगुदाती ऐसे
के हसी भी आये
और सहा भी ना जाये
तड़पता, मै
मौत
मुझसे ज्यादा खुस नजर आती है
जैसे अंधेरा
घने पेड़ों के नीचे
रौशनी में
गुमनाम रहता है
चाँदनी, रात में
सर्द हवा से
दात कटकटाते पत्तों पर
सुनसान रहती है
वैसे थोड़ी मौत जिन्दा रहती है
जताने
के जिन्दा रहना भी
इतना आसान नहीं है
चादर जो खीच लेती है वो
मेरे ऊपरी कंधे पे ठंड
आ बैठती है, पालतू सी
मै उसे हटा नहीं पाता,
एक सौदा वहीँ जम जाता है नींद का
मौत
कुछ यूँ सोती है मेरे बगल में
दिन में जब परछाईं सहम के
सिकुड़ जाती है
वो गर्दन के
सिराहने बैठ
हर पल को विडंबना बना
फुसफुसाती है कान में
मौत
तब बहुत काइयां लगती है
जब लिखते लिखते
मेरा दायां हाथ
बहिने का क़त्ल करना चाहता है
के क्यों इतने
निरस्त हो ? मुर्दा हो ?
सवाल गूंजता है
मौत
तब बहुत हस्ती है मुझपे
वो नाचते हुए आती है
मेरे कन्धों को छू नाखून से
गुदगुदाती ऐसे
के हसी भी आये
और सहा भी ना जाये
तड़पता, मै
मौत
मुझसे ज्यादा खुस नजर आती है
जैसे अंधेरा
घने पेड़ों के नीचे
रौशनी में
गुमनाम रहता है
चाँदनी, रात में
सर्द हवा से
दात कटकटाते पत्तों पर
सुनसान रहती है
वैसे थोड़ी मौत जिन्दा रहती है
जताने
के जिन्दा रहना भी
इतना आसान नहीं है
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