Sunday, March 27, 2016

तेरे चेहरे की वो बदनाम गली

वो पतली सी लकीर
जो नाक के कोने से
टंग जाती है होंठ के कोने तक

वो मुस्कान नहीं है
पर तेरे चहरे पे रहती है
खुसी सी, हसीन लगती है

मांझे सी रगड़ती है
सरकटी नागिन सी बिलखती है
जब भी तु बोलती है

ये वो गली है
जहां हर आँसू फिसल जाता है

बड़ी बदनाम गली है
जो इसे आजतक कोई नाम नहीं मिला है

कोई तो बात है
शायद वहाँ कोई शायर रहता है

जो पड़ताल लेता है तेरे हर आँसू की
और लेता है आराम भरी अँगड़ाइयाँ तेरी मुस्कानों में

वो अपना पता बताने से डरता है
शायद इसी लिए ये गाली शायरी में लापता है


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