Saturday, June 15, 2013

हार जीत


ये हार चॅखी जाए ना,
डूबता सूरज, कंठ के नीचे, निगला जावे ना,
फूटते छाले, देते है दाग ये, ऐसे जावे ना,

वो जो रोशनी आखों मे भरी थी,
जिसके साथ से मैने रहें चुनी थी,
वो दीप बुझने पाए ना |
ये हार चॅखी जाए ना |

जब चला था मैं, फूलों की राह पे,
अब जो सूखे पड़े, काटें है आगे,
कैसे ये लोग है? कैसे अंजाने?
वो भी जीता ही क्या, अगर हम ना हारे,

पल के परों पे ना कोई टीके हैं,
पत्थर ईरादे, पत्थर ही रहे हैं,
झोको मे उड़ने पाएँ ना |
ये हार चॅखी जाए ना |

जो उठे है अभी, क्या गीरे थे नही ?
आँसू के बारिश मे, क्या भीगे थे कभी ?
मंज़िलों की साजिश मे, फसा हर माझी है,
घुट के क्यों जी रहा, जब जिंदगी बाकी है|

लहरें जो गिरी, वो फिर से उठेंगी,
चाड़ने गिरने का कोई अंत ही नही,
माझी ये बुझ पाए ना,
ईस हार को चख पाएँ ना |

No comments:

Post a Comment