Saturday, June 15, 2013

नन्ही जिंदगी

मेरी जिंदगी तो बचपन मे ही रह गयी,
हर दिन चलना सीखती है ये,
और हर सुबह भूल जाती है,
मंज़िलों के फंदे  राहों मे,
झटक लेते, उठा हवा मे,
झूला समझ, हस उठती है ये,
पर गिरती है जब जमी को,
चिल्ला चिल्ला कर रोती है वो,
एक दिन फिर ढल जाता है शाम को,
और फिर चलना सेखती है नयी सुबह को,
छोड़ उन आँसू की ओस सूखे वक़्त की फर्श पर |

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