कड कड धरती को ये नोच,
बस जाते है हर दिन लोग,
जम जम के घरों की धूल,
बढ़ जाते सहरों के बोझ,
पानी को देखो चूस गये ये,
बन के काले मल के जोंख,
सर मे ले कर बुद्धि का ज़ोर,
तानाशाही करते हर रोज,
कभी खुदा, कभी ईशा,
कभी विज्ञान का है ज़ोर,
ज़रूरत के बाजार मे,
सभी बिकते है बेमोल,
मंज़िलों को पकड़ते चलते बेहोश,
ना जाने है किस बात की खोज,
बेमतलब मरते मजबूर,
फिर भी ना बदले इनकी ये सोच,
फिर जब आएगा भूचाल,
हिला के धरती की ये खाल,
ना होगा शोर, ना होगा ज़ोर,
मचेगा सन्नाटा चारो ओर,
समझे ना ईतने से बोल,
रोक सका ना कोई वक़्त की झोक,
टूटे गे घर, टूटे गे लोग,
फिर भी ना टूटे की वक़्त की डोर |
बस जाते है हर दिन लोग,
जम जम के घरों की धूल,
बढ़ जाते सहरों के बोझ,
पानी को देखो चूस गये ये,
बन के काले मल के जोंख,
सर मे ले कर बुद्धि का ज़ोर,
तानाशाही करते हर रोज,
कभी खुदा, कभी ईशा,
कभी विज्ञान का है ज़ोर,
ज़रूरत के बाजार मे,
सभी बिकते है बेमोल,
मंज़िलों को पकड़ते चलते बेहोश,
ना जाने है किस बात की खोज,
बेमतलब मरते मजबूर,
फिर भी ना बदले इनकी ये सोच,
फिर जब आएगा भूचाल,
हिला के धरती की ये खाल,
ना होगा शोर, ना होगा ज़ोर,
मचेगा सन्नाटा चारो ओर,
समझे ना ईतने से बोल,
रोक सका ना कोई वक़्त की झोक,
टूटे गे घर, टूटे गे लोग,
फिर भी ना टूटे की वक़्त की डोर |
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