याद है ना तुम्हे
वो रात जब
चाँद ने
अपना ताज उतार
रख दिया था
हम दोनों पे
और खोल दी थी
बादलों सी जटायें
मैं देख रहा था
तुम भूल रही थी
हमने उस रात
फिर बहुत लम्बी बात की थी
के ये कैसे होता है?
क्यों होता है ?
कब होता है ?
आखिर कौन सा
फासला होता है ?
जब चाँद
ऐसा फैसला लेता है
तुम्हे शायद पता नहीं
के मुझे जवाब पता था
पर मैंने उस वक़्त
तुम्हारी आवाज को ज्यादा तवज्जो दिया था
और खो दी थी
चाँद की विरासत
तुम्हारे नाम पे
याद है ना तुम्हे
के याद नहीं
वो रात जब
चाँद ने
अपना ताज उतार
रख दिया था
हम दोनों पे
और खोल दी थी
बादलों सी जटायें
मैं देख रहा था
तुम भूल रही थी
हमने उस रात
फिर बहुत लम्बी बात की थी
के ये कैसे होता है?
क्यों होता है ?
कब होता है ?
आखिर कौन सा
फासला होता है ?
जब चाँद
ऐसा फैसला लेता है
तुम्हे शायद पता नहीं
के मुझे जवाब पता था
पर मैंने उस वक़्त
तुम्हारी आवाज को ज्यादा तवज्जो दिया था
और खो दी थी
चाँद की विरासत
तुम्हारे नाम पे
याद है ना तुम्हे
के याद नहीं
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