Tuesday, November 17, 2015

चाँद की विरासत

याद है ना तुम्हे
     वो रात जब
           चाँद ने

अपना ताज उतार
     रख दिया था
          हम दोनों पे

और खोल दी थी
     बादलों सी जटायें

मैं देख रहा था
    तुम भूल रही थी

हमने उस रात
    फिर बहुत लम्बी बात की थी

के ये कैसे होता है?
    क्यों होता है ?
          कब होता है ?

आखिर कौन सा
      फासला होता है ?

जब चाँद
    ऐसा फैसला लेता है

तुम्हे शायद पता नहीं
      के मुझे जवाब पता था
पर मैंने उस वक़्त
     तुम्हारी आवाज को ज्यादा तवज्जो दिया था
           
और खो दी थी
    चाँद की विरासत
           तुम्हारे नाम पे

याद है ना तुम्हे
    के याद नहीं

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