Wednesday, November 25, 2015

सवेरा

बोसी बोसी बूंदो सा सवेरा
ओसी ओसी पलकों पे आ के ठहरा

बोसी बोसी बूंदो सा सवेरा
ओसी ओसी पलकों पे आ के ठहरा

घड़ियों के काटों की
है यही जुस्तजू

पहरों में घंटों की
हो रही है गुफ्तगू

के दिन है फिर से चढ़ा...
थाम लेना ओ खुदा.....

आसमां को घूरता
बोलता ये परिंदा
सूरज को चूमने मै आज फिर से हूँ चला


आईने सा सामने दिन खड़ा है
उमीदों का बरगद हो गया
एक हाथ से जमी को थामे हुए है
चाहें दूजे से बादल छूना

टेहनि पे बैठा हुआ
थोड़ा सा सहमा
मैं परिंदा...

ओ खुदा....
हाथ देना जरा तू बढ़ा

सवेरा...... सवेरा.......
उड़ रहा है परिंदा


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