कुछ जुगनू निकले थे
मेरी रातों में
सवेरे ढूंढने को
होसला लिए
के कुछ पल रौशन कर देंगे
ये जहाँ इन पत्तियों का
अगर हवाओं से पाला पड़ा तो
जोखिम उठा लेंगे
गले सिराहने तक
और बिछा देंगे दिवाली
शहरों की
जंगल में
जुगनू है उम्मीद है
बुझ जाये, भटक जाये
क्या फरक पड़ता है
के सवेरा आन पड़ा है
और रात पे सूरज का पहरा है
अब उमीदों की जगह कहा है
इसी लिए जुगनू दिन में नहीं दीखता है
मेरी रातों में
सवेरे ढूंढने को
होसला लिए
के कुछ पल रौशन कर देंगे
ये जहाँ इन पत्तियों का
अगर हवाओं से पाला पड़ा तो
जोखिम उठा लेंगे
गले सिराहने तक
और बिछा देंगे दिवाली
शहरों की
जंगल में
जुगनू है उम्मीद है
बुझ जाये, भटक जाये
क्या फरक पड़ता है
के सवेरा आन पड़ा है
और रात पे सूरज का पहरा है
अब उमीदों की जगह कहा है
इसी लिए जुगनू दिन में नहीं दीखता है
No comments:
Post a Comment