Wednesday, November 25, 2015

जुगनू

कुछ जुगनू निकले थे
           मेरी रातों में
                    सवेरे ढूंढने को

होसला लिए
          के कुछ पल रौशन कर देंगे
                   ये जहाँ इन पत्तियों का

अगर हवाओं से पाला पड़ा तो
         जोखिम उठा लेंगे
                    गले सिराहने तक

और बिछा देंगे दिवाली
        शहरों की
                  जंगल में

जुगनू है उम्मीद है
      बुझ जाये, भटक जाये
                क्या फरक पड़ता है

के सवेरा आन पड़ा है
     और रात पे सूरज का पहरा है

अब उमीदों की जगह कहा है
     इसी लिए जुगनू दिन में नहीं दीखता है 

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