पलकों से झड़ के जो नींद गिरी
रौशनी रेशम सी चादर खीच गयी
आँखे फुदक के जो हैं उठी
सपनों के पंछी ने ऐसी उबासी भरी
शहरों के कस्बों में फिर वही आवाज है
टहलती आई देखो पूर्वा की झोंक है
के दिन है फिर से चढ़ा
बोले हैं सवेरा
आज फिर है कुछ नया
जैसे खुल गया हो उम्मीद का कोई पिटारा
रौशनी रेशम सी चादर खीच गयी
आँखे फुदक के जो हैं उठी
सपनों के पंछी ने ऐसी उबासी भरी
शहरों के कस्बों में फिर वही आवाज है
टहलती आई देखो पूर्वा की झोंक है
के दिन है फिर से चढ़ा
बोले हैं सवेरा
आज फिर है कुछ नया
जैसे खुल गया हो उम्मीद का कोई पिटारा
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