ठंड से
फड़फड़ाते होठ
जैसे हवा से पत्ते
जैसे सवाल से जुबान
इस अहद के नौजवान
के पतझड़ जा चूका है
वसंत से उम्मीद नहीं
बस गर्मी की गुहार है
जो वक़्त के उस पार है
फड़फड़ाते होठ
जैसे हवा से पत्ते
जैसे सवाल से जुबान
इस अहद के नौजवान
के पतझड़ जा चूका है
वसंत से उम्मीद नहीं
बस गर्मी की गुहार है
जो वक़्त के उस पार है
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