Tuesday, November 17, 2015

इस अहद के नौजवान

ठंड से
     फड़फड़ाते होठ

जैसे हवा से पत्ते
जैसे सवाल से जुबान

     इस अहद के नौजवान

के पतझड़ जा चूका है
वसंत से उम्मीद नहीं
बस गर्मी की गुहार है
जो वक़्त के उस पार है


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