Monday, May 8, 2017

इस शहर में कोई भूख से नहीं मरता

इस शहर में कोई भूख से नहीं मरता
भूख से मरने वाले, भूख से मारने वाले दोनों जंगल में रहते हैं

इस शहर में सपनों की भूख है
भूखमरी फैली हुई है चारों तरफ
पर यहाँ अकाल नहीं है
शायद कोई तो जनता है
खाली पेट और पूरे पेट से ज्यादा मुनाफेदार होता है आधा भरा पेट

इस शहर में कोई भूख से नहीं मरता
भूख से मरने वाले, भूख से मारने वाले दोनों जंगल में रहते हैं
और यहाँ तो लोग जंगल से डरते है 
हर कोने को पाट के पक्का करना चाहते हैं 
रहना चाहते हैं एक खिड़की वाले घर में 
और दुनियाँ को देखना चाहते हैं अपनी अकेली खिड़की से,
वो बटन वाली स्क्रीन से 
श्श्श्श्श्श्श्श्श् ... शांत महफूज 

स्क्रीन चार दिवारी है 
जानकारी है, लाचारी है 
इस खिड़की पे बैठ कर कोई भी भाग्य विधाता बन्ने की होड़ कर सकता है 
ये खिड़की रोमांचकारी है, क्रन्तिकारी है 
परमवीर सूत्रधरी है 
इसकी दुनिया काँटों से मुक्त, दर्दरहित 
गंधहीन, स्वछ है 
अति स्वछ 
दृस्टि 

अगर घर महफूज होने को बना था तो खिड़की क्यों 
खतरों से पूरी तरह नाता न तोड़ लेने को 
एक दिवार जहाँ खिड़की रहती है 
खतरे और महफूज दोनों के रहने का आभास देती है 
दोनों का रहना जरूरी है 
आधे भरे पेट के लिए 

इस शहर में कोई भूख से नहीं मरता
भूख से मरने वाले, भूख से मारने वाले दोनों जंगल में रहते हैं

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