Sunday, January 18, 2015

ये डायरी खतम होने जा रही है

ये डायरी खतम होने जा रही है
मैंने अनजान लम्हों के चाटे इसके चेहरे पर छपे है
इसके वफादारी की इन्तेहां हुए जा रही है

ये समझ गयी है मेरी सांसे लम्बी है
और इसके कागज कम
इसी लिए थोड़ी सठिया गयी है

बूढी हो गयी है
बॉन्डिंग पर इसके झुर्रियां पड़ गयी हैं
वजन भी थोड़ा बढ़ गया है

कुछ फटे से निशान भी हैं कोनो पे
कुछ पानी के धब्बे हैं किसी बारिश के

अपनी कुचली मुरझाई आँखों से देखती है मुझे
अपने सीने आप बीती स्याहियों की महक समेटे

ये बौखलाती नहीं अब नई नई नज्मों के शोर से
उन्हें अब ये लोरियों से सुलाना जानती है

उसके कागज से मेरे हाथ जब ठंडी चुराते थे, ये बहकती थी
अब सम्हलना जान गयी है, मुझे पहचान गयी है

ये मिलना जरूरी था, अब छूटना जरूरी है
मै एक दिन किसी दराज की ताबूत में दफन कर दूंगा इसे
ये इतना भाप गई है, मतलबी सी हो गयी है

जब मै पन्ने पलटता हूँ पीछे के, कुछ पुरानी बातें बड़बड़ाती है
अनसुना करना लाजमी नहीं, सुन कर चुप रहना मुमकिन नहीं

इस लिए तो ये कलम, आज बगावत कर रहा है
तेरी जुबां गा रहा है
                   तुझसे वफ़ा कर रहा है

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