वाह! री कला
तू कल आई थी
आज नहीं
कल फिर आएगी
पता नहीं
जब भी आती हो
मिझे थोड़ा बनाती
रत्ती सही
फिर से तो आओगी
गुमा यही
मै खाता हूँ
इस कलम को भरने को
बहाता हूँ स्याही
पर जिन्दा रहने को
के निकल आओगी कभी
इस नोक की सुराख़ से
जब रगडूंगा इस कागज पे
इन सुखन में, इबारतों में
तुम मेरे खयालों को पूरा करोगे
इसी लालच में लिखता हूँ
इन फसलों को कम करोगे
जेहेन के सच उड़ेलता हूँ
कला! तु कल आई थी
आज नहीं
फिर कभी आओगी
पता यही
बस इतना कहना है
अब जब भी आना
बिन बताये आना
तू कल आई थी
आज नहीं
कल फिर आएगी
पता नहीं
जब भी आती हो
मिझे थोड़ा बनाती
रत्ती सही
फिर से तो आओगी
गुमा यही
मै खाता हूँ
इस कलम को भरने को
बहाता हूँ स्याही
पर जिन्दा रहने को
के निकल आओगी कभी
इस नोक की सुराख़ से
जब रगडूंगा इस कागज पे
इन सुखन में, इबारतों में
तुम मेरे खयालों को पूरा करोगे
इसी लालच में लिखता हूँ
इन फसलों को कम करोगे
जेहेन के सच उड़ेलता हूँ
कला! तु कल आई थी
आज नहीं
फिर कभी आओगी
पता यही
बस इतना कहना है
अब जब भी आना
बिन बताये आना
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