मेरे दिमाग में
उठे कुछ ख़याल
जबीं की दिवार पे
कालिख पोत रहे थे
तिलमिलाया में पूछ पड़ा
अरे! किसने तुमको जगाया
वो बोल पड़े
तुम्हारी नजरों से जो भी छन कर आया
उसे उबाल रहें है, उसे ही खा रहे हैं
अब इन विचारों में प्रचारों की मिलावट हों
या कोई तुम्हें भटकाना चाहता हों
तो हम क्या करे
उठे कुछ ख़याल
जबीं की दिवार पे
कालिख पोत रहे थे
तिलमिलाया में पूछ पड़ा
अरे! किसने तुमको जगाया
वो बोल पड़े
तुम्हारी नजरों से जो भी छन कर आया
उसे उबाल रहें है, उसे ही खा रहे हैं
अब इन विचारों में प्रचारों की मिलावट हों
या कोई तुम्हें भटकाना चाहता हों
तो हम क्या करे
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