एक उबलते दूध के हुबाब सा उठते हैं
एक दूसरे पर झपटते फूटते
कंधे पे पाव रख फिर से उठते
जो कहीं तो कुछ जल रहा है
एक लम्बे समय से
इतना वक़्त लगा उठने में
और जो अब उठ रहा है तो यूं बेशुमार
कुछ बारजे लांग कर गिर पड़े, बेसुध, बेकार
जो रह गए पड़े, जमे मलाई की तरह
कुछ ऐसे ही उठे थे ये विचार
इस गलते बदलते शरीर में
कुछ गिर गए है
दौड़ते वक़्त के हाथो से
और जो रह गए है
वो जम रहे है इन डायरी के कागजों पे
एक दूसरे पर झपटते फूटते
कंधे पे पाव रख फिर से उठते
जो कहीं तो कुछ जल रहा है
एक लम्बे समय से
इतना वक़्त लगा उठने में
और जो अब उठ रहा है तो यूं बेशुमार
कुछ बारजे लांग कर गिर पड़े, बेसुध, बेकार
जो रह गए पड़े, जमे मलाई की तरह
कुछ ऐसे ही उठे थे ये विचार
इस गलते बदलते शरीर में
कुछ गिर गए है
दौड़ते वक़्त के हाथो से
और जो रह गए है
वो जम रहे है इन डायरी के कागजों पे
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