Tuesday, January 19, 2016

राग : मेरे घर का

किचन के चूल्हे पर गरम होते दूध से
बाथरूम में रखे छोटे नीले टब तक
उसका विशाल सम्राज्य कायम है

मेरे चौड़े गद्दों का सिंघासन
जहाँ मै कभी कूदता था
या आलास में सुबह से मुह चुराता था
वह अब उस नवाब का अखाडा है
और, मै और मेरी प्यारी तकिया उसके कोने
वैसे गौर करने की बात ये भी है की
इस कोने को अब अंगड़ाई लेने की भी आजादी नहीं है

रंगे काले बालों वाली बूढी नानी
अपने घुटने का दर्द भूल कर, मुस्कुराती है
नीदें खट्टी करती है
पर नाना को फ़िक्र नहीं है
या फ़िक्र है उसे चोट लग जाने की
"अरे! देखो कहीं गिर ना जाएँ"

उसकी माँ, मेरी जनम की दुश्मन
कहती है " ये बिलकुल नहीं रोता"
और याद दिलाती है माँ को
की मै कितना रोया करता था
हुँह! उसे क्या पता नवाबी
रोना तानाशाही का मूलमंत्र है
पर सच कहूँ , ये महाराज तो हस्ते भी नापतोल के हैं
ज्यादा चालाक हैं

मुझे अफ़सोस नहीं
के उसके आँख का एक आंसू
मेरी रात भर की नींद से ज्यादा भारी है
मुझे बस बीच-बीच में याद आता है
वो सम्राज्य, जिसका युग खत्म हो चूका है
और उस तानाशाह की
जो अब इस साम्राज्य में
एक पहरेदार मात्र है


* राग  मेरे भांजे का नाम है जिसके लिये ये कविता लिखी गयी है।


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