बड़ा ही मासूम ख्याल है
भीगी हुई रुई सा
आटों की लोई सा
शीशों पे पटकी गई
रौशनी के छर्रों सा
बड़ा ही मासूम ख्याल है
जैसे पानी में कूदा कुछ
पट से, पर दिखा नहीं
मै ढूँढता हूँ
हिलकोरा तो उठा होगा ना कहीं
बड़ा ही मासूम ख्याल है
साहब! बस मैंने उसे पकड़ा नहीं
ना जाने क्यों जाने दिया
साला जेब कुतर गया
मै अभी तक खड़ा वहीँ
बड़ा ही मासूम ख्याल है
कह गया था ग़ालिब कभी
मेरे कानो में अब फुसफुसाहट है
शेरों की, ग़ज़लों की
कबूतरों की, गुटरगूँ की
बड़ा ही मासूम ख्याल है
भीगी हुई रुई सा
आटों की लोई सा
शीशों पे पटकी गई
रौशनी के छर्रों सा
बड़ा ही मासूम ख्याल है
जैसे पानी में कूदा कुछ
पट से, पर दिखा नहीं
मै ढूँढता हूँ
हिलकोरा तो उठा होगा ना कहीं
बड़ा ही मासूम ख्याल है
साहब! बस मैंने उसे पकड़ा नहीं
ना जाने क्यों जाने दिया
साला जेब कुतर गया
मै अभी तक खड़ा वहीँ
बड़ा ही मासूम ख्याल है
कह गया था ग़ालिब कभी
मेरे कानो में अब फुसफुसाहट है
शेरों की, ग़ज़लों की
कबूतरों की, गुटरगूँ की
बड़ा ही मासूम ख्याल है
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