मैंने एक चाहत में
उसका कुछ बिगड़ा
उस्ने मूझे उजाड़ के
अपनि राहत को पाया
क्योकि जो भी था "मेरा"
वो था उसके लिए "तुम्हारा"
और जो लगा उसे "अपना"
वो ना था मुझे "प्यारा"
वाह री हिमाकत
तुझमे है कितनी ताकत
सब लगे थे चमन गुलजार करने
खुद के खयालों को अमल कर के
भिड़े लड़े,
शहंशाह भी बने
पर बेजार बंजर के
उसका कुछ बिगड़ा
उस्ने मूझे उजाड़ के
अपनि राहत को पाया
क्योकि जो भी था "मेरा"
वो था उसके लिए "तुम्हारा"
और जो लगा उसे "अपना"
वो ना था मुझे "प्यारा"
वाह री हिमाकत
तुझमे है कितनी ताकत
सब लगे थे चमन गुलजार करने
खुद के खयालों को अमल कर के
भिड़े लड़े,
शहंशाह भी बने
पर बेजार बंजर के
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