मैं तुम्हारे बारे में कुछ जानती हूँ !
क्या ?
पता नहीं क्या ?
वो....
वो तो नहीं जानती ?
या ,
ये तो नहीं ?
वो वाला सच
जिससे मैं खुद को अँधेरे में अकेले देखता हूँ
या वो वाला सच, खुले छोर के कुएं सा
जिसे मै बस झांक के चला गया था
उसमे कूदा नहीं
या वो साँचा जो किसी और ने बनाया
अभी तक तोड़ा नहीं
वो ग़लतफहमी थी!
पता नहीं, पता नहीं
या वो डर
जिसे मै जूते के तिरछे कोने से मसल गया था
उसकी राख की काजल
किसी ने लगा तो नहीं ली
कहीं! वो वाली मरी सी आवाज तो नहीं
जो रात में उठी थी
अरे यार! वो तो बस
मेरे कन्धों की रगड़ थी
या वो फर्श पे
फैली सी गलती
जो साफ़ तो की थी
पर दीवारों पर छींटे भूल गयी
बड़ा ही अजीब माहोल है
यहाँ सूरज
नाही ढल रहा है
ना ही उग रहा है
बस फलक के हलक अटका हुआ है
ये उषा की छलांग है?
या साँझ की डुबकी?
मेरे आँखों के छप्पर पे
कई जम गयी है
गंध मार रही है
बहुत नींद आ रही है
फकत
अभी तक
तुमने बताया नहीं
कि तुम मेरे बारे में क्या जानती हो ?
क्या ?
पता नहीं क्या ?
वो....
वो तो नहीं जानती ?
या ,
ये तो नहीं ?
वो वाला सच
जिससे मैं खुद को अँधेरे में अकेले देखता हूँ
या वो वाला सच, खुले छोर के कुएं सा
जिसे मै बस झांक के चला गया था
उसमे कूदा नहीं
या वो साँचा जो किसी और ने बनाया
अभी तक तोड़ा नहीं
वो ग़लतफहमी थी!
पता नहीं, पता नहीं
या वो डर
जिसे मै जूते के तिरछे कोने से मसल गया था
उसकी राख की काजल
किसी ने लगा तो नहीं ली
कहीं! वो वाली मरी सी आवाज तो नहीं
जो रात में उठी थी
अरे यार! वो तो बस
मेरे कन्धों की रगड़ थी
या वो फर्श पे
फैली सी गलती
जो साफ़ तो की थी
पर दीवारों पर छींटे भूल गयी
बड़ा ही अजीब माहोल है
यहाँ सूरज
नाही ढल रहा है
ना ही उग रहा है
बस फलक के हलक अटका हुआ है
ये उषा की छलांग है?
या साँझ की डुबकी?
मेरे आँखों के छप्पर पे
कई जम गयी है
गंध मार रही है
बहुत नींद आ रही है
फकत
अभी तक
तुमने बताया नहीं
कि तुम मेरे बारे में क्या जानती हो ?
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