जाने कितने, पत्ते टूटे
डालियों से, अपने छूटे
ऐसी , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
तारकोल की, बिछा के चादर
घुमा के पहिये, गाड़ी निकली
धुँआ धुँआ है, हवा हवा है
भूली बिसरी बातें निकली
ऐसी , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
पानी के चेहरे पे,
ऊँगली से छू के
जो हिलकोरे, हमने थे छोड़े
आज लहरें बन लौटे
चुपके, दुकपुका के
आंसू जो निकले
हमने हवाओं से थे जो पोछे
आज सावन बन लौटे
जितनी भी है
माकूल है हम उसमे
टेढ़े मेढ़े सही
आके अटके हैं हम तुझमे
कुछ माफ़ कर दिया है
कुछ साफ़ कर चले
खामोशियों के पानी से
यादें घोट चले
ऐसे , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
तिनको की, बना के मुट्ठी
उठा के फेंकी, हवा में फैली
ऐसे , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
डालियों से, अपने छूटे
ऐसी , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
तारकोल की, बिछा के चादर
घुमा के पहिये, गाड़ी निकली
धुँआ धुँआ है, हवा हवा है
भूली बिसरी बातें निकली
ऐसी , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
पानी के चेहरे पे,
ऊँगली से छू के
जो हिलकोरे, हमने थे छोड़े
आज लहरें बन लौटे
चुपके, दुकपुका के
आंसू जो निकले
हमने हवाओं से थे जो पोछे
आज सावन बन लौटे
जितनी भी है
माकूल है हम उसमे
टेढ़े मेढ़े सही
आके अटके हैं हम तुझमे
कुछ माफ़ कर दिया है
कुछ साफ़ कर चले
खामोशियों के पानी से
यादें घोट चले
ऐसे , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
तिनको की, बना के मुट्ठी
उठा के फेंकी, हवा में फैली
ऐसे , हाँ.… हाँ..... कैसी
कहानी अपनी
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