Tuesday, May 5, 2015

वो तालियों से पिटा है

कागज पे चीनी डाल कर
   चबाने की कोशिश की है
अनजाने रहने की जिद पे
   उसने ये हद की है

ये मांस का गुदा
   हड्डी का गुथ्था
गरम रहने को
   किस किस की जेब में ना रहा

पोशम्पा, रिंगा - रिंगा पर
   झूम झूम कर गिरा
इसी बेखुदी में रहने को
   सांसे काली कर पी गया

किसी बूढ़ी लंगड़ाती सलाह के
   अनुभव पे चल के
वास्तविक्ता से वो बस
    दो कश दूर रह गया

वो जानवर है
    दांत हैं उसके पास
पर बस वो चबा सकता है
    काटना मना है

'ट्रेडमिल' पर वो
   बेतुका सा दौड़ता है
किसी की आँखों में अटकने को
   खड़े खड़े भटकता है

एक 'पोर्ट्रेट' बनाने 
  वो भी सच्चे प्यार की
सिंदूर में डुबाए 'ब्रश' को पकडे
  नाजाने कब से खड़ा है

बूह लगती है उसे महक अपनी
   वो धोता है, रगड़ता है
पर हर गुजरती हवा में, गिरेबान से
   किसी को ढूंढता है

और फिर
    जब वो मनचाहा किरदार बन
             मंच पर चढ़ा
    तो तमाशे के अंत में
            वो तालियों से पिटा है

अब
    जब लोगों की समझ से दूर
          वो चाँद को घूरता है
    हर हरकत को बूझता है
           शर्मिंदगी नहीं, अफ़सोस नहीं
बस घूरता है

चाँद को
       घूरता है

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