Tuesday, December 23, 2014

ये अहंकार

बहुत जुर्रत कर रहा हूँ
उसे तौलिये से रगड़ हटाने की

ना जाने कैसे जा जमा
काली मेल सा मेरी पीठ पर

ये अहंकार

मल मल के साबुन की थूक से
फेन बना, रहा उसे घुला
पर हर उठते हुबाब में
जो दिखा, बस चेहरा मेरा

मेरे नजरों के दायरों में
वो आता ही नहीं

फकत दूजों के आइनों में
साफ झलकता

अब किस्से पूछू
वो छूटा के नहीं

इस खुदी का वेहम
टुटा के नहीं

बस! जुर्रत कर रहा हूँ
के अब! थोड़ा छिल सा गया हूँ

No comments:

Post a Comment