बहुत जुर्रत कर रहा हूँ
उसे तौलिये से रगड़ हटाने की
ना जाने कैसे जा जमा
काली मेल सा मेरी पीठ पर
ये अहंकार
मल मल के साबुन की थूक से
फेन बना, रहा उसे घुला
पर हर उठते हुबाब में
जो दिखा, बस चेहरा मेरा
मेरे नजरों के दायरों में
वो आता ही नहीं
फकत दूजों के आइनों में
साफ झलकता
अब किस्से पूछू
वो छूटा के नहीं
इस खुदी का वेहम
टुटा के नहीं
बस! जुर्रत कर रहा हूँ
के अब! थोड़ा छिल सा गया हूँ
उसे तौलिये से रगड़ हटाने की
ना जाने कैसे जा जमा
काली मेल सा मेरी पीठ पर
ये अहंकार
मल मल के साबुन की थूक से
फेन बना, रहा उसे घुला
पर हर उठते हुबाब में
जो दिखा, बस चेहरा मेरा
मेरे नजरों के दायरों में
वो आता ही नहीं
फकत दूजों के आइनों में
साफ झलकता
अब किस्से पूछू
वो छूटा के नहीं
इस खुदी का वेहम
टुटा के नहीं
बस! जुर्रत कर रहा हूँ
के अब! थोड़ा छिल सा गया हूँ
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