Friday, December 12, 2014

पियानो (Piano)

तफ्दीश करी एक गूंज ने
सन्नाटे से माहोल में

जब छू दिया मैंने
पियानो की जुबान पे

नाच उठी ये उँगलियाँ
फूल गयी वो शान से

जैसे आवाज मिली गूंगे को
नजाने कितने साल में

एक कानी गुस्से से गुर्रा रही
तो दूसरी देती चुलबुली पुकार

बीच की उँगलियाँ तालमेल बैठाती
अंगूठा रहा भागता हांफ

कोई इसको लांगती
कोई उसको फांद

खिट-खिट खेलते हो बच्चे
जैसे हर शाम

ठहाके उनके धुन ये
चिल्लाना एक साज

कलाइयां मेरी नाच रहीं
सुनके उनका राग

कुछ ऐसे उठी एक तरनुम
नींद तोड़ के बेशुमार

जब पियानो की कमर पे
फिसल गया मेरा हाथ

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