Saturday, December 6, 2014

चाँद सोचता होगा

चाँद को तक तक मैंने
आँखों के सपने दिखाए थे

और सुबह सोचा करता था
के चाँद क्या सोचता होगा मेरे बारे में?

इक रात मेरी नजर चाँद से फिसल
जमी पर गिरी

कुछ ओस की बूंदे
चांदनी आँखों से मुझे देख रही थी

सब की सब हंसी थी
जैसे अपने सपनो का जिक्र कर रही थी

जी चाहा उतर गले लगा लू
पर ये नजारा खोने का डर था

बस सुनते उन्हें ये दुआ कर पाया
के सच हो जाये ये सपने उनके

और अगली सुबह, सोच पड़ा
के चाँद भी कुछ ऐसा ही सोचता होगा
जब देखता होगा मुझपे

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