Monday, November 17, 2014

हावड़ा ब्रिज

मिसरे थे, लफ्ज़ थे, अल्फ़ाज़ थे
      कुछ मीठे, कुछ खट्टे, कुछ आपस में लड़े थे

पर सब एक कागज पे
      एक नज्म में सिमटे थे

हावड़ा ब्रिज पर खड़े
     वक़्त ने आज वो कागज फाड़ फेका है

हुगली के चैहरे पर तैरते
    सब बिछड़ रहे हैं

ये टुकड़े हस रहे हैं
     तड़प रहें हैं

सब साथ में कभी एक हसीं नज्म थे
अब साथ में सब बस यादें लिए हैं

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